
पापमोचनी एकादशी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन व्रत करने से मान्यता है कि सभी पापों का नाश होता है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट तो हो ही जाते हैं साथ ही वह धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त करता है।
कब पड़ती है पापमोचनी एकादशी हिंदी और अंग्रेजी दोनों कैलेंडर में
पापमोचनी एकादशी चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह वार्षिक तौर पर मार्च या अप्रैल माह में आती है।
क्यों मनाया जाता है पापमोचनी एकादशी
पापमोचनी एकादशी का व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। इस व्रत का पालन करने से मान्यता है कि सभी पापों का नाश होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस दिन क्या-क्या नहीं करना चाहिए
पापमोचनी एकादशी के दिन व्रती को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस दिन व्रती को झूठ नहीं बोलना चाहिए, किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, और किसी के साथ विवाद नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, व्रती को अन्याय, हिंसा, और अनैतिक कार्यों से बचना चाहिए। साथ ही तुलसी पत्ते को इस दिन तोड़ना तो दूर की बात स्पर्श भी नहीं करनी चाहिए। इस दिन काले वस्त्रों को धारण करने से बचें। चावल से बना कोई भी चीज बिल्कुल ही न खाएं, जैसे भात, मुढ़ी, चिउरा, भुजा इत्यादि।
इस दिन क्या क्या करना चाहिए

पापमोचनी एकादशी के दिन व्रती को विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा, व्रती को ध्यान, जप और योग करना चाहिए। इस दिन व्रती को धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना चाहिए, और यदि संभव हो, तो व्रती को दान और पुण्य कार्य करने का प्रयास करना चाहिए।
इसका व्रत कैसे करना चाहिए
व्रत की रात्रि में व्रती को सगे संबंधियों के साथ सोना नहीं चाहिए। अकेला सोना चाहिए। उपवास भी रख सकते हैं। अगर पूर्ण उपवास नहीं कर रहे हैं तो हर एकादशी तिथि की तरह इस दिन भी अन्न खाने से बचें। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए तथा दान और पुण्य कार्य करने का प्रयास करना चाहिए।
आइए जानते हैं पापमोचनी एकादशी की कहानी,
पापमोचनी एकादशी की कथा बहुत ही रोचक है। एक समय की बात है, एक राजा थे जिनका नाम चित्रसेन था। वे अपनी प्रजा के प्रति बहुत ही दयालु और न्यायप्रिय थे। एक दिन वे अपने मन्त्रियों के साथ वन में शिकार करने गए। वहां उन्होंने एक मृग को देखा और उसे मारने की कोशिश की, लेकिन वह मृग एक ऋषि के आश्रम में भाग गया। राजा ने उसे वहां भी मारने की कोशिश की, जिससे ऋषि कुपित हो गए और उन्होंने राजा को श्राप दिया कि वह एक राक्षस बन जाए। राजा ने ऋषि से क्षमा मांगी और उन्होंने बताया कि वे अपने श्राप को कैसे दूर कर सकते हैं। ऋषि ने उन्हें बताया कि वे पापमोचनी एकादशी का व्रत रखें। राजा ने व्रत का पालन किया और उनके श्राप का नाश हो गया। इस प्रकार, इस दिन का व्रत रखने से मान्यता है कि सभी पापों का नाश होता है। आम जिंदगी में अगर आप अपने किये किसी पाप से पीड़ित हैं उसे भूल नहीं पा रहे हैं तो यह व्रत जरूर करें ताकि आप उस पाप से पूर्णतः मुक्त हो जाएं।
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