– राकेश कुमार श्रीवास्तव

ऐसा माना जाता है स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से अर्जुन को पापमोचिनी एकादशी का व्रतकथा सुनाया था।
कहानी के अनुसार राजा मान्धाता ने धर्म के गुढ़ रहस्यों के ज्ञाता महर्षि लोमश से पूछा- ‘हे ऋषिश्रेष्ठ! मनुष्य के पापों का मोचन किस प्रकार सम्भव है? कृपा कर कोई ऐसा सरल उपाय बतायें, जिससे सहज ही पापों से छुटकारा मिल जाए।’ मान्धाता के इस निवेदन को सुनकर महर्षि लोमश ने कहानी सुनाना प्रारम्भ किया।
उन्होंने कहा हे राजन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचिनी एकादशी है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुम्हें इस व्रत की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो-
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक एक वन था। उसमें अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार किया करती थीं। वहाँ सदैव वसन्त का मौसम रहता था। इस वजह से वहां वर्ष भर नाना प्रकार के पुष्प खिले ही रहते थे। उसी वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे। वे शिवभक्त थे। एक दिन एक अप्सरा की नजर उन पड़ पड़ी और वह उनसे मोहित हो गयी, इसलिए वह कुछ दूरी पर बैठ वीणा बजाकर मधुर स्वर में गाने लगी और फिर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिये नृत्य करने लगी।
आज है पापमोचनी एकादशी, आइए हमारे साथ जानें इसकी महत्ता के बारे में
अप्सरा का नाम मंजुघोषा था। उस समय महर्षि मेधावी भी युवावस्था में थे और काफी हृष्ट-पुष्ट थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दण्ड धारण कर रखा था। महर्षि मेधावी मञ्जुघोषा के मधुर गाने, नृत्य व उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गए। इस मद में वह शिव रहस्य को भूल गए और काम के वशीभूत होकर अप्सरा के आगोश में चले गये। इस प्रकार से उन्होंने मञ्जुघोषा के साथ सन्तावन साल व्यतीत कर दिये। एक दिन ऋषि से उसने जाने की आज्ञा मांगी। मगर मुनि मंजुघोषा के प्रेम व वासना में पूरी तरह से जकड़ गये थे। वो बार बार कहते कि अभी थोड़ा और रुक जाओ ऐसी भी क्या जल्दी है ज्यादा समय थोड़े न हुआ है।
आखिरकार अप्सरा ने समझाते हुए कहा कि हे ऋषि अपनी इस वासना के जंजाल से निकलिए और ध्यान लगाइए कि आपने कितना समय गुजार दिया है अब तक। अप्सरा के यूं झकझोरने पर ऋषि जैसे होश में आ गये। उनको दिखाई दिया कि जीवन में शिवसाधना को छोड़कर वे काम के वश में अपना 57 साल व्यर्थ कर दिये हैं। वह गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगे। वे सोचने लगे कि अगर यह मेरी जिंदगी में नहीं आती तो शायद मेरी तपस्या भंग न हुई होती। वह क्रोधित हो गये। इतना ज्यादा समय भोग-विलास में व्यर्थ चले जाने का उन्हें बेहद अफसोस हुआ। उन्होंने क्रोध में आकर अप्सरा को पिशाचिनी बन जाने का श्राप दे दिया।’
मुनि के श्राप से दुखी अप्सरा पिशाचिनी तो बन गई। मगर उसने अपना आपा व होश नहीं खोया। उसने कहा- ‘हे ऋषिवर! मुझ पर क्रोध न करें, क्रोध किसी भी सच्चे ज्ञानी को शोभा नहीं देता। कृपा करके बताइये कि इस श्राप का निवारण किस प्रकार होगा? माना कि मेरी वजह से आपकी तपस्या भंग हुई मगर मैंने ही आपको इस वासना के जंजाल से निकालने में आपको मदद भी की। आप बताइए कि अगर आप जैसे एक पुण्य आत्मा के साथ रहने पर मञ्जुघोषा को पिशाचिनी बनना पड़े, तो क्या इससे आपकी बदनामी नहीं होगी संसार में?’ मञ्जुघोषा की बात सुनकर मुनि को अपने क्रोध पर पश्चाताप हुआ। अतः पिशाचिनी बनी मञ्जुघोषा से मुनि ने शांत होकर कहा- मैं तुझे इस श्राप से मुक्ति का उपाय बतलाता हूँ। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम पापमोचिनी है। उस एकादशी का उपवास करने से तेरी पिशाचिनी की देह से मुक्ति हो जाएगी।’
ऋषि को अपनी गलती का एहसास हो गया था।
उपरांत वे अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए वे अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये। उन्होंने अपनी प्रखरता और तेज कम होने और शिवभक्ति से दूर होने के पाप के बारे में अपने पिता को बताया। और अपने पाप से निकलने का उपाय पूछने लगे। उनके पिता ने उनकी बात गंभीरतापूर्वक सुनी और कहा कि हे पुत्र! तुम जो उपाय उस अप्सरा को बताए हो वही तुम भी करो अर्थात् चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी का विधि तथा भक्तिपूर्वक उपवास करो, इससे तुम्हारे भी सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।’
अपने पिता च्यवन ऋषि के वचनों को सुनकर मेधावी मुनि ने भी पापमोचिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। उसके प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गए। मञ्जुघोषा अप्सरा भी पापमोचिनी एकादशी का उपवास करने से पिशाचिनी की देह से छूट गई और पुनः अपना सुन्दर रूप धारण कर स्वर्गलोक चली गई।
लोमश मुनि ने कहा-हे राजन! इस पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण व पठन से एक हजार गौदान करने का फल प्राप्त होता है। इस उपवास के करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले, मद्यपान करने वाले, अगम्या गमन करने वाले आदि भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।”