
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान की विदेश और रक्षा नीति पूरी तरह से दोहरे मानकों पर आधारित है। इस बार भी युद्ध विराम की पहल पाकिस्तान की ओर से ही आई है, और भारत ने अपनी शर्तों पर इसे स्वीकार किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह युद्ध विराम स्थायी रहेगा? क्या पाकिस्तान आतंकवाद से हाथ खींचेगा? और क्या भारत को इस समय युद्ध विराम स्वीकार करना भी चाहिए था?
भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट था: अब आतंकवादी हमला, सीमापार से कोई गोलीबारी, या किसी भी प्रकार का अतिक्रमण सीधे-सीधे युद्ध की कार्रवाई मानी जाएगी। यही नीति इस बार पाकिस्तान को असहज कर गई। भारत ने इस बार सिर्फ सीमित जवाबी कार्रवाई ही नहीं की, बल्कि पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों के ठिकानों को गंभीर क्षति भी पहुंचाई।
इस हमले के बाद पाकिस्तान का रुख नरम पड़ा और उसने अमेरिका जैसे अपने संरक्षक देश को बीच में डालकर युद्ध विराम की गुहार लगाई। यहां भारत के पक्ष में अमेरिका सहित कई वैश्विक ताकतों का झुकाव भी दिखाई दिया। अमेरिका ने भी यह समझा कि भारत अब “No Tolerance Policy” पर काम कर रहा है।
पाकिस्तान की दोहरी नीति और दुनिया के सामने उसकी फजीहत
पाकिस्तान की विडंबना यह है कि एक तरफ वह दुनिया के मंच पर शांति और कूटनीति की बातें करता है, वहीं दूसरी ओर उसकी सेना और खुफिया एजेंसी ISI आतंकवादियों को पनाह देती है, ट्रेनिंग देती है और भारत में भेजती है।
अगर पाकिस्तान को आतंकवादियों से इतना ही प्रेम है तो फिर क्यों नहीं उन्हें अपनी सेना में ही भर्ती कर लेता? कम से कम उनकी पहचान ‘आतंकवादी’ से हटकर ‘आधिकारिक सैनिक’ की हो जाएगी और उसकी अंतरराष्ट्रीय मंच पर होने वाली बदनामी भी कम हो जाएगी।
लेकिन पाकिस्तान की नीति हमेशा से ‘चोरी-छिपे हमला और फिर मासूम बनने’ की रही है। इस बार भारत ने इस खेल को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।
पाकिस्तान की आर्थिक दिवालियापन और युद्ध की मूर्खता
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जिस पाकिस्तान की स्थिति भीख मांगने जैसी हो गई है, जो IMF, सऊदी अरब, चीन, तुर्की, UAE जैसे देशों से कर्ज मांग-मांग कर थक चुका है, जिसकी जनता महंगाई, बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रही है, उस पाकिस्तान को युद्ध के लिए आखिर पैसे कौन और क्यों दे रहा है?
IMF की सहायता हो या किसी इस्लामी देश की मदद, वे धनराशि पाकिस्तान को जनता की भलाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और खाद्य सुरक्षा के लिए दी जाती है, न कि हथियार खरीदने और आतंक फैलाने के लिए। यही सवाल अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने खड़ा है।
पाकिस्तान ने उस धन का भीषण दुरुपयोग कर दिखाया है, जो जनता की भलाई के लिए था। यही कारण है कि अब IMF और अन्य वित्तीय संस्थाएं भी पाकिस्तान को कठोर शर्तों पर ही सहायता देने को तैयार हैं।
भारत को युद्ध विराम स्वीकार करना चाहिए था या नहीं?
बहस का सबसे बड़ा बिंदु यही है। कई सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को इस बार निर्णायक कार्यवाही करनी चाहिए थी और पाकिस्तान की आतंकी फैक्ट्रियों को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए था।
भारत ने पहले भी कई बार पाकिस्तान पर भरोसा किया है, लेकिन हर बार पाकिस्तान ने विश्वासघात ही किया है। यह युद्ध विराम भी कब तक टिकेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
इस समय पाकिस्तान केवल अपनी खस्ता आर्थिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण पीछे हटा है। लेकिन यह मानना भोलापन होगा कि पाकिस्तान अपनी पुरानी नीति से पूरी तरह पलट जाएगा।
आगे के संभावित प्रभाव और भारत की रणनीति
- भारत की नीति स्पष्ट है: अब कोई भी आतंकी हमला, चाहे वह किसी भी संगठन या व्यक्ति द्वारा हो, सीधे पाकिस्तान की जिम्मेदारी मानी जाएगी।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की साख और गिरेगी: अब पाकिस्तान आतंकवाद के समर्थन और आर्थिक असफलताओं की दोहरी मार झेल रहा है।
- भारत को सतर्क रहना होगा: युद्ध विराम भले ही हुआ हो, लेकिन पाकिस्तान की हर गतिविधि पर भारत को सख्त नजर बनाए रखनी होगी।
- चीन और तुर्की जैसे देशों पर भी नजर: पाकिस्तान को चीन और तुर्की से गुप्त हथियार या समर्थन मिल सकता है, इसलिए भारत को सामरिक दृष्टि से पूरी तैयारी करनी होगी।
- आर्थिक और कूटनीतिक दबाव: भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पर आतंकवाद के मुद्दे पर दबाव बनाए रखना चाहिए।
पाकिस्तान को आतंकवादियों की शरणस्थली बनाकर रोटी सेंकने की पुरानी आदत थी। लेकिन अब भारत की नई नीति और दुनिया की बदलती नजर से पाकिस्तान की यह रणनीति विफल होती दिख रही है। चोरी-छिपे और आतंकवादी की आड़ में अब पाकिस्तान अपनी राजनीति नहीं चला पाएगा।
भारत ने इस बार भले ही युद्ध विराम मान लिया है, लेकिन भविष्य में यदि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया, तो भारत को अपनी सशस्त्र ताकत का पूरी मजबूती से प्रयोग करना चाहिए।
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