ऑपरेशन सिंदूर: आतंक पर करारा प्रहार और भारत की राष्ट्रवादी एकता का ऐतिहासिक संदेश

✍️ राकेश कुमार श्रीवास्तव

22 अप्रैल 2025 का दिन हर भारतीय के दिल में जख्म की तरह दर्ज हो गया। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने 26 निर्दोष लोगों की जान ले ली। ये लोग पर्यटक थे, जो कश्मीर की वादियों में फुर्सत के कुछ शांत पल बिताने गए थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि वे आतंक की चपेट में आ जाएंगे।

इस हमले की क्रूरता की पराकाष्ठा तब सामने आई जब आतंकियों ने पीड़ितों से उनके कपड़े उतरवाकर यह जांचा कि वे हिंदू हैं या मुसलमान। जब यह तय हो गया कि वे हिंदू हैं, तो उन्हें बेरहमी से गोली मार दी गई।

यह केवल हत्या नहीं थी—यह भारत के सामाजिक सौहार्द पर भी हमला था। इन आतंकियों की मंशा थी कि इस हमले के बाद भारतीय हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के प्रति शंका, अविश्वास और वैमनस्य की भावना रखने लगें। लेकिन उनकी यह साजिश जमींदोज हो गईं।

भारत की साझी संस्कृति का जवाब

भारतीय मुसलमानों ने इस कायराना हमले की खुलकर निंदा की। नफरत की इस आग में तेल डालने की जगह, देशभर में हिंदू-मुसलमानों ने मिलकर शांति और एकता का दीप जलाया।

आतंकियों की मंशा थी “हम” और “वे” में फर्क पैदा करना, लेकिन भारतवासियों ने यह साबित कर दिया कि —
हम सब एक हैं, और हमारे लिए राष्ट्र सबसे पहले है।


ऑपरेशन सिंदूर: सोच-समझ कर उठाया गया कदम

भारत ने इस हमले के बाद किसी भी तरह की जल्दबाज़ी नहीं की। यह कोई भावनात्मक या बदले की अंधी कार्रवाई नहीं थी। बल्कि यह एक पूर्ण रणनीतिक और कूटनीतिक अभियान था।

भारत सरकार ने दुनिया के बड़े-बड़े देशों — अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और यहां तक कि चीन — को भी डिप्लोमैटिक चैनलों से भरोसे में लिया।

6 मई की रात को भारत ने पाकिस्तान और PoK में स्थित जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के 9 आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल एयर स्ट्राइक किया। इसमें राफेल जेट्स और स्कैल्प मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ।

इस सटीक हमले में माना जा रहा है लगभग 90 आतंकी ढेर हुए हैं। भारत ने केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, आम नागरिकों या सेना को नहीं।


पाकिस्तान की गीदड़ भभकी: हम एक्शन नहीं लेंगे अगर भारत अपनी कार्रवाई बंद कर दे।

हमले के बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने बयान दिया—

“अगर भारत कार्रवाई रोक ले तो हम एक्शन नहीं लेंगे।”

यह वही नीति है जिसे हिंदी में गीदड़ भभकी कहा जाता है—जब सामने वाला ज़ोरदार तमाचा मार चुका होता है, तब डर कर झुकते हुए बगल से सीटी मारो कि “हम भी कुछ कर सकते थे, पर हमने किया नहीं!”

पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि भारत अब वह देश नहीं जो कूटनीति में उलझकर जवाब रोक दे। आज का भारत आतंकवाद पर कार्रवाई से पहले परमिशन नहीं लेता—सीधा निष्पादन करता है।


चीन की प्रतिक्रिया और मजबूरी

चीन ने बयान दिया कि—

“यह अफसोसनाक है, पर आतंकवाद भी बुरा है।”

यह विरोधाभासी बयान सिर्फ कूटनीति नहीं, डर और व्यापारिक मजबूरी का मिला-जुला परिणाम है।

चीन भारत पर खुलकर बोल नहीं सकता क्योंकि 2024 में दोनों देशों के बीच 135 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार हुआ, जिसमें से अधिकांश चीन का भारत को निर्यात है।

भारत किसी भी समय चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाकर चीन की कमर तोड़ सकता है, जैसा पहले TikTok, WeChat, और Xiaomi ऐप्स पर बैन में देखा गया।

और सबसे बड़ा डर यह है कि अगर भारत पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों को नष्ट कर सकता है, तो क्या पता कल को ऑक्साई चिन या अरुणाचल प्रदेश को लेकर भी निर्णायक कदम न उठा ले।


निष्कर्ष: भारत की नई छवि—एकजुट, निर्णायक, आत्मनिर्भर

ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह एक राष्ट्रीय संदेश था—

आतंक को जवाब देने का

भारत के भाईचारे को दिखाने का

और दुनिया को यह समझाने का कि भारत अब Reactive नहीं, Decisive राष्ट्र बन चुका है।

हम भारतवासी न तो किसी से डरते हैं,
न किसी पर चढ़ाई करना चाहते हैं—
लेकिन अगर हमें उकसाया गया, तो हम चुप नहीं रहेंगे।



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