अमेरिका-भारत टकराव गहराया: टैरिफ विवाद से रक्षा सौदों तक खिंची रेखा

ट्रंप का 25% टैरिफ और भारत का F‑35 डील पर पुनर्विचार: कूटनीतिक टकराव का नया अध्याय

पृष्ठभूमि: अमेरिका का 25% टैरिफ भारत पर सीधा वार

30 जुलाई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयातित लगभग $87 अरब (₹87 अरब) के सामान पर 25% आयात शुल्क (tariff) लगाने की घोषणा की। इसमें कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ज्वेलरी, फार्मा और ऑटो पार्ट्स जैसे प्रमुख निर्यात शामिल हैं। ट्रंप प्रशासन ने इस कदम को भारत के “अनुचित व्यापार रवैये” और रूस से ऊर्जा व रक्षा सहयोग को लेकर नाराज़गी से जोड़ा। यह कदम न केवल भारतीय निर्यात क्षेत्र के लिए चुनौतीपूर्ण है बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी झटका माना जा रहा है। रिजर्व बैंक और रेटिंग एजेंसियों ने GDP वृद्धि दर में 0.5% तक की गिरावट की आशंका जताई है।

भारत की प्रतिक्रिया: संयम, परंतु दृढ़ता का संकेत

भारत ने तुरंत कोई प्रतिशोधात्मक टैरिफ नहीं लगाया, बल्कि स्थिति को कूटनीतिक तरीके से संभालने का निर्णय लिया। वाणिज्य मंत्री पियुष गोयल ने संसद में कहा कि भारत “dead economy” बनने की धमकी से नहीं डरेगा और किसानों, उद्यमियों और श्रमिकों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता (bilateral trade talks) जारी रखने की घोषणा की, और WTO नियमों के तहत उचित कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखा। अगस्त 2025 में नई दिल्ली में अमेरिका के प्रतिनिधिमंडल के साथ वार्ता तय है।

F‑35 डील पर भारत का पुनर्विचार: एक बड़ा संकेत

अमेरिकी टैरिफ के बाद भारत ने एक बड़ा रणनीतिक कदम उठाया—F‑35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने के प्रस्ताव से दूरी बना ली। यह डील अमेरिका के लिए अत्यंत महत्वाकांक्षी थी, लेकिन भारत ने साफ किया कि वह रक्षा सौदों पर किसी प्रकार का दबाव स्वीकार नहीं करेगा। इस निर्णय के पीछे दो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं: Make in India नीति: भारत अब रक्षा क्षेत्र में स्थानीय उत्पादन और तकनीकी साझेदारी पर जोर दे रहा है। रणनीतिक स्वायत्तता: F‑35 जैसे उच्च तकनीकी प्लेटफॉर्म में अमेरिकी सॉफ्टवेयर और लॉजिस्टिक निर्भरता भारत की स्वतंत्र रक्षा नीति पर सवाल खड़े कर सकती थी।

वैश्विक राजनीति पर असर

A. अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव

F‑35 डील से पीछे हटना अमेरिकी प्रशासन के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप प्रशासन पहले ही चाहता था कि भारत बड़े रक्षा सौदों के जरिए अमेरिका से और गहरे जुड़ जाए। अब यह संबंध अधिक जटिल हो सकते हैं।

B. रणनीतिक संतुलन में बदलाव

चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति के बीच भारत का यह कदम संदेश देता है कि वह किसी एक ध्रुव पर निर्भर नहीं रहेगा। यह रक्षा आत्मनिर्भरता (self-reliance) को बढ़ावा देने की दिशा में एक मजबूत कदम है।

C. दूसरे देशों के लिए उदाहरण

NATO सहित कई देशों में भी F‑35 की शर्तों को लेकर असंतोष है। भारत का यह फैसला उन देशों के लिए मिसाल बन सकता है कि रक्षा सौदे राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ही किए जाएं।

संभावित आर्थिक और सुरक्षा प्रभाव व्यापार मोर्चा:

यदि अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विवाद सुलझता नहीं है, तो भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान हो सकता है।

रक्षा मोर्चा: भारत अब स्वदेशी लड़ाकू विमानों जैसे तेजस MK‑2 और AMCA, साथ ही फ्रांस और रूस जैसे देशों के साथ साझेदारी को प्राथमिकता दे सकता है।

कूटनीतिक मोर्चा: यह टकराव अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी को प्रभावित कर सकता है, खासकर जब दोनों देश इंडो‑पैसिफिक क्षेत्र में चीन को संतुलित करने के लिए सहयोग कर रहे थे।

अंततः: भारत का संतुलित लेकिन सख्त संदेश

भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह व्यापार और रक्षा सौदों में राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। ट्रंप का 25% टैरिफ जहां आर्थिक चुनौती बनकर आया है, वहीं F‑35 डील से दूरी बनाना अमेरिका को यह संकेत देने का प्रयास है कि भारत को दबाव में नहीं लाया जा सकता। अब नजरें अगस्त 2025 में होने वाली व्यापार वार्ता होंगी, जो यह तय करेगी कि यह टकराव सुलझाव की ओर बढ़ेगा या तनाव और बढ़ेगा।

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