
📅 तारीख: 3 जुलाई 2025
✍️ रिपोर्ट: Aaj Ki Taaza Khabar डेस्क
🔴 पाकिस्तान को मिली यूएनएससी अध्यक्षता
2 जुलाई 2025 को एक ऐसी खबर आई जिसने भारत के राजनीतिक, कूटनीतिक और रणनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की घूमती अध्यक्षता (Rotational Presidency) जुलाई महीने के लिए मिल गई है।
यह पद भले प्रतीकात्मक हो, लेकिन इसका राजनयिक, मनोवैज्ञानिक और वैश्विक संदेश बहुत गहरा है।
🟢 पाकिस्तान को क्या मिला?
- वैश्विक वैधता (Global Legitimacy)
पाकिस्तान वर्षों से एक आतंक-प्रायोजित राष्ट्र के रूप में जाना जाता रहा है। लेकिन इस अध्यक्षता से उसे अब यह कहने का मंच मिलेगा कि वह एक “सम्मानित जिम्मेदार देश” है।
- भारत-विरोधी नैरेटिव को हवा
अब पाकिस्तान के पास एक वैधानिक मंच है जहां वह भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला सकता है — खासकर कश्मीर, अल्पसंख्यकों के अधिकार और मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दों पर।
- घरेलू राजनीति में ‘विजय’ का झूठा दावा
अब पाकिस्तानी मीडिया और सेना समर्थक नेता यह दावा करेंगे कि “देखो, भारत को पीछे छोड़कर पाकिस्तान वैश्विक मंच पर छा गया है।”
🔴 भारत को क्या नुकसान?
- कूटनीतिक अपमान और बैकफुट पर दबाव
भारत वर्षों से UNSC की स्थायी सदस्यता की कोशिश करता रहा है। लेकिन आज पाकिस्तान जैसे देश को भी अध्यक्षता मिल गई और भारत को नहीं — यह मनोजगत और जनमत दोनों स्तरों पर झटका है।
- कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण
हालांकि अध्यक्षता देने का अर्थ यह नहीं कि कोई निर्णय अकेले ले सकता है, लेकिन पाकिस्तान इस मंच का इस्तेमाल कर कश्मीर के मुद्दे को बार-बार उठाएगा और भारत की छवि बिगाड़ने की कोशिश करेगा।
- भारत की सॉफ्ट पावर को चोट
भारत की पहचान दुनिया में एक शांतिप्रिय, लोकतांत्रिक और बहुलतावादी देश के रूप में रही है। लेकिन हाल के वर्षों में इस छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दी जा रही है, और पाकिस्तान जैसे देश इसका फायदा उठा रहे हैं।
❓ भारत क्यों पिछड़ गया?
- विदेश नीति में स्पष्टता की कमी
भारत कई वैश्विक मुद्दों पर स्पष्ट स्टैंड लेने से बचता रहा है — जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष, या ईरान-अमेरिका तनातनी। इससे भारत की पहचान “निर्णय टालने वाले देश” के रूप में बनती जा रही है।
- पड़ोस नीति की विफलता
श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, अब बांग्लादेश — सभी देशों में भारत का प्रभाव या तो कम हुआ है या खत्म होने की कगार पर है।
शेख हसीना जैसी भारत समर्थक नेता अब सत्ता में नहीं रहीं और युनुस समर्थित गुट की सरकार बन गई है, जो भारत विरोधी झुकाव रखती है।
चीन, तुर्की, मलेशिया, कतर और पाकिस्तान मिलकर एक इस्लामिक और चीन-समर्थक लॉबी चला रहे हैं। भारत का कोई संगठित “भारत समर्थक वैश्विक समूह” नहीं बन पाया।
🧭 क्या भारत में हिंदू–मुस्लिम संबंधों का असर अंतरराष्ट्रीय छवि पर पड़ा?
यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है — और इसमें सच और प्रोपेगेंडा दोनों की भूमिका है।
✅ भारत की जमीनी सच्चाई:
भारत के गाँवों, कस्बों और शहरों में आज भी हिंदू और मुसलमान साथ में रहते हैं, त्यौहार साझा करते हैं, रोज़गार में साथ होते हैं और आपस में वैवाहिक संबंध तक बनते हैं।
रामनवमी की झांकियों में मुस्लिम तबले बजाते हैं, तो ईद के पकवान हिंदू घरों में पहुँचते हैं।
यह भारत की सच्चाई है — और यही उसकी आत्मा।
❗ लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या होता है?
- Selective रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया नैरेटिव:
कुछ पश्चिमी मीडिया संस्थान भारत के हर छोटे सांप्रदायिक विवाद को बड़ा मुद्दा बनाकर यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि भारत “मुस्लिम विरोधी” देश है।
- पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों का झूठा प्रचार
ये देश कश्मीर और अल्पसंख्यक मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाते रहते हैं — जबकि अपने यहाँ अल्पसंख्यकों को कोई अधिकार नहीं।
- UN, OIC जैसी संस्थाओं पर प्रभाव
भारत OIC (इस्लामिक देशों के संगठन) का हिस्सा नहीं है। वहाँ पाकिस्तान भारत के खिलाफ “नैरेटिव सेट” करता है।
😔 नतीजा?
भारत की सच्चाई को दबाकर उसके खिलाफ गलत छवि पेश की जाती है, और ये छवि अब धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल हो रही है।
🛡️ क्या भारत को डरना चाहिए?
नहीं — लेकिन अब भारत को “सतर्क, सक्रिय और आक्रामक” होना पड़ेगा।
✔ भारत के पास अभी भी ताकतें हैं:
G20 की सफल अध्यक्षता
चंद्रयान-3 और डिजिटल भारत का प्रभाव
फ्रांस, अमेरिका, जापान, इज़राइल जैसे मित्र
लेकिन यह ताकत तभी काम आएगी जब भारत:
- वैश्विक मंचों पर नैरेटिव सेट करेगा — न कि केवल बचाव में बोलेगा
- अपनी सॉफ्ट पावर को मजबूत करेगा — जैसे योग, संस्कृति, आध्यात्मिकता
- डिजिटल रणनीति को ग्लोबल बनाएगा — ताकि प्रोपेगेंडा का जवाब हर स्तर पर दिया जा सके
✍️ निष्कर्ष:
आज पाकिस्तान जैसे देश को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिलना केवल एक “औपचारिक पद” नहीं है, यह एक वैचारिक युद्ध का मोर्चा है।
भारत इस समय कई स्तरों पर बैकफुट पर है — विदेश नीति, पड़ोसी नीति, और अंतरराष्ट्रीय छवि — इन तीनों को नई रणनीति, नई ऊर्जा और स्पष्ट राष्ट्रहित की भावना से फिर से गढ़ने की ज़रूरत है।
वरना एक दिन ऐसा आएगा जब आतंक का पोषक खुद “शांति का दूत” बनकर खड़ा होगा और असली लोकतंत्र चुप रह जाएगा।
✒ विशेष विश्लेषण – Aaj Ki Taaza Khabar
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