आपको बता दें प्रतिपदा तिथि का आगमन रविवार को देर रात 1 बजकर 22 मिनट 56 सेकंड पर हो चुका है। हालांकि सूर्योदय इसी तिथि में हुआ तो सोमवार को प्रतिपदा तिथि के अनुसार मां दुर्गा के प्रथम दिन के स्वरूप शैलपुत्री की पूजा हो रही है। प्रतिपदा तिथि आज रात 2 बजकर 55 मिनट और 24 सेकेंड तक रहेगी।
नवरात्रि का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना का पावन समय होता है। नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ दुर्गा के इस स्वरूप को हिमालयराज की पुत्री कहा जाता है। उनके नाम में ही उनका स्वरूप स्पष्ट है – “शैल” का अर्थ होता है पर्वत अर्थात् पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
माँ शैलपुत्री का वाहन नंदी बैल है और वे अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और कल्याणकारी है। माँ शैलपुत्री की कृपा से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मबल, शुद्धता और समस्त दुखों से मुक्ति मिलती है।
माँ शैलपुत्री की पौराणिक कथा
माँ शैलपुत्री का प्राकट्य एक विशेष पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। यह कथा राजा दक्ष, देवी सती और भगवान शिव से संबंधित है।
पुराणों के अनुसार, देवी सती भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने अपने ही दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती ने यह सुना तो वे बिना निमंत्रण के ही अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गईं। वहां उन्होंने देखा कि उनके पिता भगवान शिव का अपमान कर रहे हैं। यह अपमान सहन न कर पाने के कारण देवी सती ने उसी यज्ञ कुंड में अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को यह समाचार मिला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने गणों के साथ राजा दक्ष के यज्ञ का विनाश कर दिया। देवी सती के इस आत्मदाह के बाद वे अगले जन्म में हिमालयराज की पुत्री के रूप में जन्मी, जिन्हें शैलपुत्री कहा गया। इस जन्म में उन्होंने कठोर तपस्या कर पुनः भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया।
माँ शैलपुत्री की महिमा
माँ शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य है। वे प्रकृति की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी पूजा करने से साधक को आत्मबल प्राप्त होता है और उसका मन संयमित व शुद्ध होता है। वे भक्तों को असीम शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, जो साधक सच्चे मन से माँ शैलपुत्री की आराधना करता है, उसके जीवन से समस्त कष्ट, भय और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। यह दिन विशेष रूप से आध्यात्मिक जागरण और आत्मबल प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि
नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है –
1. प्रातः काल स्नान और संकल्प
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
माँ शैलपुत्री की पूजा का संकल्प लें और मन में सकारात्मक विचार धारण करें।
2. माँ की प्रतिमा या चित्र की स्थापना
पूजन स्थल को साफ कर माँ शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
एक साफ लाल या सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर माँ की प्रतिमा रखें।
3. कलश स्थापना
पूजा स्थल पर एक कलश स्थापित करें, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक होता है।
कलश में जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें।
4. पूजन सामग्री और अर्पण
माँ शैलपुत्री की पूजा में निम्नलिखित सामग्रियों का प्रयोग करें –
✅ लाल और सफेद पुष्प
✅ चंदन और रोली
✅ अक्षत (साबुत चावल)
✅ धूप और दीप
✅ घी या तेल का दीपक
✅ दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का पंचामृत
✅ फल और मिठाई
5. माँ शैलपुत्री का मंत्र और स्तुति
माँ शैलपुत्री के निम्नलिखित मंत्र का जाप करें –
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
या
“वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥”
इस मंत्र का जाप 108 बार करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
6. माँ को भोग अर्पण
माँ को दूध से बने मिष्ठान, घी, फल और मिश्री का भोग लगाएं। विशेष रूप से गाय का दूध और घी अर्पित करने से माता प्रसन्न होती हैं।
7. आरती और ध्यान
माँ शैलपुत्री की आरती करें और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें।
माँ का ध्यान कर उनके स्वरूप की कल्पना करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
माँ शैलपुत्री के पूजन से प्राप्त होने वाले लाभ
माँ शैलपुत्री की आराधना करने से भक्तों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं –
✅ शांति और आध्यात्मिक शक्ति – माँ की कृपा से साधक के मन में शांति और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है।
✅ सकारात्मक ऊर्जा – नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
✅ स्वास्थ्य में सुधार – माँ की पूजा से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
✅ मनोकामनाओं की पूर्ति – सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है।
✅ राशि के अनुसार प्रभाव – जिनकी राशि वृषभ या तुला होती है, उनके लिए माँ शैलपुत्री की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
उपसंहार
नवरात्रि का प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना के लिए विशेष होता है। यह दिन आत्मशुद्धि, संयम और श्रद्धा का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री की उपासना करने से साधक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और वे आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं।
माँ शैलपुत्री की कृपा से सभी भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त हो!
जय माँ शैलपुत्री!
शुभ नवरात्रि!