मातारानी का डोली से आगमन हाथी पर प्रस्थान .. क्या होगा फल..

कब से शुरू हो रही है नवरात्रि

मातारानी शारदीय नवरात्र के शुक्लपक्ष प्रतिपदा को ही आगमन करती हैं। इस हिसाब से आज ही मतलब 6 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को ही मातारानी का आगमन हो चुका है, मगर ऐसी बात नहीं है। वास्तव में यह तिथि गुरुवार को 13 बजकर 46 मिनट 08 सेकेंड तक रहेगी और चुंंकि इसी तिथि में सूर्योदय भी हो रहा है तो सुर्योदय वाली तिथि मान्य रहेगी। भादो के महीने की समाप्ति शाम 4 बजकर 34 मिनट 25 सेकेंड पर अर्थात् अमावस्या तिथि पूर्ण हो जाएगी। और शारद नवरात्रि की शुक्लपक्ष को प्रतिपदा तिथि शाम 4 बजकर 34 मिनट 26 सेकेंड पर प्रारम्भ हो जएगी। गुणीजनों का मानना है मां दुर्गा की उपासना का पावन पर्व नवरात्रि 07 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ होगा। क्योंकि नवरात्रि 07 अक्टूबर का सूर्योदय प्रतिपदा में होगा इसलिये इसी दिन से मातारानी का आगमन मान्य होगा। अब चुंकि मातारानी का आगमन बृहस्पतिवार के दिन हो रहा है इसलिये मातारानी डोली में सवार होकर आएंगी। इस साल तृतीया और चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ने के कारण नवरात्रि आठ दिन के पड़ रहे हैं। विजयदशमी अर्थात् दशहरा 15 अक्टूबर को मनाया जायेगा।

डोली से आगमन पर क्या होता है फल
इस साल मां दुर्गा डोली पर आएंगी और हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करेंगी। माना जाता है डोली पर आने से महिलाओं को शक्ति मिलती है और समाज में उनका वर्चस्व बढ़ता है। माता दुर्गा हाथी पर अपने भक्तों से विदा लेंगी। हाथी पर सवार होकर मातारानी का प्रस्थान भक्तों के लिए शुभ फलदायी होता है। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि मातारानी का आगमन डोली पर होने से जीवों में किसी बीमारी का प्रकोप बढ़ता है और हाथी पर प्रस्थान करने से भूकंप आदि का सामना करना पड़ सकता है। और राजनीति में बड़ा फेरबदल हो सकता है। हमारा मानना यह है कि मातारानी का किसी भी रूप में कैसे भी आगमन हमेशा ही शुभ औऱ फलदायी होता है। हमारा मानना यह है कि यदि बीमारी का प्रकोप बढ़े तो वह जड़ से खत्म हो जाएगी मातारानी के आगमन से और मातारानी के गज से प्रस्थान करने पर यदि भूकंप आता है तो उर्वरक मिट्टी धरती के उपर आयेगी जिससे फसल की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होगी। इस तरह से मातारानी सबका किसी न किसी तरह से उपकार ही करेंगी। मातारानी की जय हो। राजनीति में फेरबदल तो जनता के हित में ही हुआ करता है। मातारानी की कृपा से सर्वत्र शांति फैले।
कैसे पता करते हैं कि मातारानी किसकी सवारी करके आ रही हैं
आमतौर पर कई लोगों में यह प्रश्न उठता है कि आखिर किस प्रकार से यह पता चलता है कि मातारानी किसी चीज की सवारी करके आ रही हैं। शास्त्रों के अनुसार यह माना जाता है कि रविवार और सोमवार को प्रथम पूजा यानी कलश स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार और मंगलवार को कलश स्थापना होने पर माता का वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार और शुक्रवार के दिन कलश स्थापना होने पर माता डोली पर चढ़कर आती हैं। बुधवार के दिन कलश स्थापना होने पर माता नाव पर सवार होकर आती हैं।
शारदीय नवरात्रि 2021 तिथियां
पहला दिन (7 अक्टूबर)- मातारानी के शैलपुत्री रूप की पूजा
दूसरा दिन (8 अक्टूबर)- मातारानी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा
तीसरा दिन (9 अक्टूबर)- मातारानी के चंद्रघंटा और कुष्मांडा रूप की पूजा
चौथा दिन (10 अक्टूबर)- मातारानी के स्कंदमाता रूप की पूजा
पांचवा दिन (11 अक्टूबर)- मातारानी के कात्यायनी रूप की पूजा
छठा दिन (12 अक्टूबर)- मातारानी के कालरात्रि रूप की पूजा
सातवां दिन (13 अक्टूबर)- मातारानी के महागौरी रूप की पूजा
आठवां दिन (14 अक्टूबर)- मातारानी के सिद्धिरात्रि रूप की पूजा
नौवां दिन (15 अक्टूबर)- दशहरा अर्थात् विजयदशमी..
घट-स्थापना का शुभ व सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त्त
जैसा कि हमने बताया हिंदू तिथि व समय के अनुसार प्रतिपदा तिथि आज ही आरम्भ हो चुकी है मगर मातारानी का आगमन उसी तिथि में मान्य होगा जिस तिथि में सूर्योदय होता है। अश्विन महीने की प्रतिपदा से नवरात्रि शुरू होती हैं. इसी दिन घट स्थापना की जाती है. इस साल 7 अक्टूबर 2021 को घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का सर्वश्रेष्ठ समय बृहस्पतिवार सुबह 06:17 मिनट से 10:11 मिनट तक रहेगा. इसके बाद अभिजीत मुहूर्त 11:46 मिनट से 12:32 मिनट तक रहेगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन शुक्ल प्रतिपदा, गुरुवार को घट स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाएगी।
नवरात्रि व्रत करने वालों के लिये,
जानें कौन-कौन से पूजन सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती हैं
मां दुर्गा की तस्वीर, सिंदूर, केसर, कपूर, धूप, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, चौकी, चौकी के लिए लाल कपड़ा, पानी वाला जटायुक्त नारियल, दुर्गासप्तशती किताब, आम के पत्तों का बंदनवार, पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, पांच मेवा, घी, लोहबान, गुग्गुल, लौंग, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर और हवन कुंड, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, शहद, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, लाल रंग की गोटेदार चुनरी, लाल रेशमी चूड़ियां, सिंदूर, आम के पत्ते, लाल वस्त्र, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, धूप, अगरबत्ती, माचिस, कलश, साफ चावल, कुमकुम, मौली, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी/ तेल, फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल व मिठाई, दुर्गा चालीसा व आरती की किताब, कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ आदि।
घट स्थापना विधि
घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त में मिट्टी के बर्तन में सात अनाज रखें. इसके बाद एक कलश में जल भरकर उसके ऊपरी भाग पर धागा बांधकर उसे मिट्टी के पात्र पर रख दें, जिसमें सात तरह के अनाज हैं. इसके बाद कलश के ऊपर पत्ते रखें, पत्तों के बीच में कलावा बंधा हुआ नारियल लाल कपड़े में लपेटकर रखें. फिर कलश पूजा करें. इसके बाद देवी मां का आह्वान करें. अगले 9 दिनों तक रोजाना घट की पूजा-अर्चना करें. इस दौरान निरामिष भोजन करें। या फिर फलाहार करें।
नवरात्रि में किन बातों से रखें परहेज
नवरात्रों के दिनों में प्याज, लहसुन, अंडे और मांस-मदिरा आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। नाखून, बाल आदि नहीं काटने चाहिए। भूमि पर शयन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। किसी के प्रति द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए। चमड़े की चप्पल, जूता, बेल्ट, पर्स, जैकेट आदि नहीं पहनना चाहिए और कोई भी पाप कर्म करने से आप और आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है। रोजाना सुबह और शाम को माँ दुर्गा का कोई भी पाठ अवश्य करें। कुछ नहीं तो दुर्गा चालीसा पाठ करने पर भी मातारानी प्रसन्न रहती हैं। सौ बात की एक बात मातारानी की कृपा पाने के लिये आपका उनके प्रति समर्पण व भक्तिभाव जरूर ही रहनी चाहिए वरना जितना भी क्रिया-विधि से आप पूजन करें मन में भक्ति भाव न हो तो कोई फायदा नहीं।
विशेष नोट
जो यदि कोई रोग से त्रस्त हो तो उनके लिये कोई नियम नहीं है। वो तो अपने चिकित्सा करने वाले डॉक्टर या वैद्य के ही बताये गये नियम का पालन करें। भक्तिभाव हो तो आप कुछ भी करें मगर मन ही मन मां दुर्गा के मंत्रों का जाप भी अगर आप करते हैं तो आपको बहुत ही फायदा मिलेगा। किसी के लिये यदि आप प्रार्थना भी करते हैं तो भी फलदायी होगा। जय जय मातारानी की। 

लेखक-राकेश कुमार श्रीवास्तव

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