राजीव गांधी: एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व

  • राकेश कुमार श्रीवास्तव

22 मई 1991 — एक मनहूस सुबह की स्मृति और राजीव गांधी को समर्पित श्रद्धांजलि

22 मई 1991 की सुबह केवल एक समाचार नहीं थी—यह भारत की राजनीति, पत्रकारिता और आम जनमानस की चेतना पर गहरी चोट थी।

मेरे बड़े भाई सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव उस समय सन्मार्ग अख़बार में कार्यरत थे। शायद उस दिन वह ड्यूटी नहीं गये थे। वह बताते थे जिन्होंने उस दु:समाचार को पीटीआई के हवाले से पहले रिसीव किया था उन्होंने बहुत ही आराम से इस खबर को बिना किसी पेनिक या एक्साइटमेंट के बता दिया था। उनके बताने का लहजा कुछ इस प्रकार था, “आईंईईई… राजीव गांधी को ले बिता…” और सही भी था अगर पत्रकार पैनिक हो जाए या फिर एक्साइटेड तो फिर वह पत्रकार पत्रकार कहां रह गया। दूसरे पत्रकार थे उनको इस खबर पर भरोसा नहीं हुआ। उन्होंने वापस से टेलीप्रिंटर से निकले पीटीआई की उस खबर को देखा था। न्यूज़रूम में सन्नाटा छा गया। भैया बताते थे कि जिन्होंने इस खबर को बनाया था वह पूरी बदहवासी में बनाया था। उन्होंने खुद स्वीकारा था कि उन्हें याद ही नहीं रहा कि उन्होंने क्या लिखा।

उस दिन (22 मई ) की शाम को सन्मार्ग का विशेष संध्या संस्करण भी निकला था।


राजीव जी को बेहद करीब से देखा था

मैं तब बहुत छोटा था। लेकिन मुझे अब भी याद है—राजीव गांधी जी कोलकाता आए थे और उनका काफिला हमारे भाटपाड़ा वाले घर के सामने से गुजरा था।
हमने उन्हें बहुत करीब से देखा था। उनके चेहरे पर एक तेज़ लाइट थी, और वह मुस्कुराते हुए हाथ हिला रहे थे। उनका चेहरा इतना गोरा और रक्तिम आभा से भरा था कि लगता था—अगर छू दें, तो खून निकल पड़े। वह छवि आज तक आंखों में बसी है।

हमारे मोहल्ले में एक चाचा थे—लक्ष्मण चाचा। जब उन्हें राजीव गांधी की हत्या की खबर मिली, तो उन्हें गहरा सदमा लगा। वे कई हफ्तों तक शारीरिक और मानसिक रूप से टूटे से रहे—कम बोलते, कम खाते और हमेशा किसी गहरे शोक में डूबे रहते। यह एक आम नागरिक की अपने नेता से आत्मिक जुड़ाव की सजीव मिसाल है।


राजीव गांधी की हत्या क्यों हुई?

राजीव गांधी की हत्या का मूल कारण था उनका श्रीलंका नीति और IPKF (Indian Peace Keeping Force) के तहत की गई कार्रवाई।
1987 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौते के अंतर्गत, भारत ने तमिल टाइगर्स (LTTE) और श्रीलंकाई सेना के बीच शांति कायम करने के लिए भारतीय सेना भेजी थी।

लेकिन LTTE को यह हस्तक्षेप नागवार गुज़रा। उन्होंने राजीव गांधी को अपना शत्रु मान लिया। 21 मई 1991 को, तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान, आत्मघाती हमलावर धनु ने माला पहनाने के बहाने बम विस्फोट कर दिया। राजीव गांधी सहित 18 लोग मारे गए। उस घटना में वही फोटोग्राफर राम जी (नाम ठीक से याद नहीं शायद यही नाम था) शहीद हुए जिन्होंने विस्फोट से कुछ क्षण पहले की तस्वीर खींची थी।


राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और मीडिया का विक्षोभ

उस समय प्रधानमंत्री थे वी. पी. सिंह। दुखद घटनाओं के बाद अक्सर सत्ता के प्रति जन आक्रोश उमड़ता है। कोलकाता से प्रकाशित एक हिंदी अख़बार ने इस जनाक्रोश का लाभ उठाने की कोशिश की और सनसनीखेज झूठी खबर छाप दी—‘राजीव गांधी की हत्या में वी. पी. सिंह का हाथ!’

लोगों ने अखबार हाथोंहाथ खरीदा। लेकिन बाद में सच सामने आया और उस अखबार के संपादक व मालिक को अफवाह फैलाने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। यह दर्शाता है कि कैसे दुःख की घड़ी में अफवाहें भी आतंक से कम नहीं होतीं।


राजीव गांधी – एक स्वप्नद्रष्टा, एक भविष्यद्रष्टा

राजीव गांधी भारतीय राजनीति के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने। उन्होंने जब सत्ता संभाली, तब देश इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उथल-पुथल से जूझ रहा था।

उनकी सबसे बड़ी और दूरदर्शी उपलब्धियों में से एक थी—भारत में कंप्यूटर क्रांति की नींव रखना।
जब उनके विरोधी यह कह रहे थे कि “कंप्यूटर आने से बेरोजगारी बढ़ेगी,” तब राजीव गांधी कह रहे थे—“कंप्यूटर नहीं आएगा, तो भारत भविष्य से कट जाएगा।”

उन्होंने तकनीकी शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, टेलीफोन एक्सचेंज, टेली-कम्युनिकेशन और डिजिटलीकरण की दिशा में अद्वितीय कार्य किए। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियों को आधुनिक तकनीक से लैस करने का बीड़ा उठाया।

राजीव गांधी ने युवाओं को नई सोच, नई ऊर्जा और नए भारत का सपना दिया। उनका सपना था—21वीं सदी का आत्मनिर्भर, सशक्त और तकनीकी भारत।

वह एक शालीन, शांत और स्पष्ट दृष्टि वाले नेता थे। उनके भाषणों में सौम्यता होती थी, और आंखों में भरोसा। सत्ता उनके लिए स्वार्थ नहीं, सेवा का माध्यम थी।


श्रद्धांजलि – सिर्फ़ एक नेता को नहीं, एक युग को

राजीव गांधी की हत्या ने देश का केवल एक नेता नहीं छीना, बल्कि एक युग, एक सोच और एक उम्मीद भी छीन ली।

उनकी याद सिर्फ़ अख़बारों के पन्नों में नहीं है, वह स्मृतियों, घरों और दिलों में जिंदा हैं
चाहे वह लक्ष्मण चाचा हों, न्यूज़रूम के स्तब्ध पत्रकार हों या सड़क किनारे खड़े हम बच्चे—राजीव गांधी सभी के अपने थे।

राजीव गांधी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
उनका सपना, उनका विश्वास और उनकी दृष्टि भारत में हमेशा जीवित रहेगी।


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