टुसू के कलाकारों का सरकार से इस महोत्सव को बचाने व भत्ते की मांग

संवाददाता, पुरुलिया : पुरुलिया का टुसू आधुनिकता के स्पर्श में अपनी परंपरा खो चुका है। टुसू के नजदीक आने के बावजूद भी टुसू (चौडल) नहीं बिक रहा है। एक समय था जब झालदा साप्ताहिक हाट या तुलिन हाट में एक महीने तक चौडल खरीदने के लिए महिलाओं की भीड़ देखते बनती थी। आज उन बाजारों में उतनी भीड़ नहीं है। आधुनिक युग में शिक्षित समाज और मोबाइल फोन की लत के कारण युवाओं में टुसू पर्व का महत्व कम होता जा रहा है। टुसू या चौडल के निर्माता यही सोच रहे हैं।
झालदा खाटझुरी गांव के चौडल निर्माता भीम कोईरी, देवेन कोईरी और प्रेमलाल कोईरी ने बताया कि एक समय झालदा बाजार में चौडल की खूब बिक्री होती थी। लेकिन अब इसकी बिक्री उस तरह नहीं हो रही है। आधुनिक युग के लड़के-लड़कियां मोबाइल फोन में व्यस्त होकर स्थानीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। हम संस्कृति की रक्षा के लिए चौडल बना रहे हैं लेकिन ऐसी कोई बिक्री नहीं हो रही है। कभी गांव के 20 से 25 लोग चौडल बनाते थे, अब कुछ ही लोग बनाते हैं। क्योंकि चौडल की बिक्री नहीं होती और कपड़ों की कीमत के मुकाबले चौडल की कीमत नहीं मिल पाती। यह टुसू त्योहार मानभूम का सबसे बड़ा त्योहार है। गांव में टुसू की पूजा एक महीने तक चलती थी और एक महीने के बाद मकर संक्रांति के दिन टुसू विसर्जित की जाती है। आज यह प्रायः यह अतीत में खोते जा रहा है। इसलिए हम संस्कृति को जीवित रखने के लिए चौडल बना रहे हैं। इसलिए हम प्रशासन से अपील कर रहे हैं कि हमें कलाकार भत्ता मिले। ताकि हम परंपरा को बरकरार रख सकें, नहीं तो हम भी काम करना बंद कर देंगे और किसी अन्य काम में शामिल हो जाएंगे।